एक दिन रिचर्ड गेर के साथ

बात शायद 1991 की है। बीस साल की उम्र थी। बीए फर्स्ट ईयर में था। हिन्दी मीडियम से पढ़ा था। मुंबइया फिल्में देखता था। लिहाजा अंग्रेजी फिल्मों की खास समझ मुझमें थी नहीं। फिर भी दोस्तों के कहने पर मैं लखनऊ के मेफेयर सिनेमाघर में ..प्रेटी वुमन.. देखने गया। बकौल एक दोस्त-फिल्म में काफी ..सीन.. थे। हमारे जैसे ज्यादातर छात्र अंग्रेजी फिल्मों को खास इसी उद्देश्य से देखने जाते थे। खैर फिल्म देखने जाने से पहले अपने एक मित्र से मैंने कहानी जान ली और पहुँच गए मेफेयर पर जब बाहर निकले तो कोई ..सीन.. याद नहीं था, याद था तो बस जूलिया रोबर्ट्स का खूबसूरत चेहरा और रिचर्ड गेर की जबरदस्त एक्टिंग। फिल्म देखते वक्त कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं खुद रिचर्ड गेर के साथ म्बा वक्त बिताऊँगा। पर वो दिन मेरी जिंदगी में आया...

तारीख 13 अगस्त 2006, टोरंटो आए करीब एक हफ्ता बीत चुका था। यह मेरे जर्नलिज्म करियर के तब तक के बेहतरीन असाइनमेंट्स में से एक था। असाइनमेंट यानी ..वर्ल्ड एड्स कान्फ्रेंस.. का कवरेज। मुझे यह मौका हेनरी जे काइज़र फैमिली हेल्थ फाउंडेशन के फेलो के तौर पर मिला। हिन्दुस्तान लखनऊ में मैं सीनियर कॉरस्पॉन्डेंट के तौर पर हेल्थ बीट कवर करता था। एचआईवी एड्स पर काम करने के लिए यह फेलोशिप उसी दौरान मिली थी। सांध्य समाचारपत्र ..संसार लोक.. से नौकरी शुरू करने के बाद खुद को इस हद तक लाने की खुशी से मैं काफी हद तक आत्ममुग्ध था। बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ, वल्र्र्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन और कई अन्य यूएन एजेन्सियों के प्रमुखों से रूबरू हो चुका था। एक्साइटमेंट उस वक्त चरम पर पहुँचा जब पहले ही दिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान आमना-सामना हुआ। पहली बार समझ में आया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रेस कान्फ्रेंस किस हद तक प्रायोजित होती हैं। सवाल पूछने वाले पत्रकार पहले ही तय होते हैं। मीडिया मैनेजमेंट से जुड़े लोग उनके सवाल एक पर्ची में लिखकर ले लेते हैं ताकि जवाब देते वक्त कोई दिक्कत न हो। सवाल तो पूछ नहीं पाए, ऊपर से रही-सही कसर क्लिंटन के सुरक्षा घेरे ने पूरी कर दी। उस वक्त बड़ा क्रेज था क्लिंटन का। कुछ ही देर में क्लिंटन हाथ हिलाते हुए वापस चले गए। उनके जाते ही कल्पना जैन आ गईं। वो उस वक्त काइजर फाउंडेशन की अंतरराष्ट्रीय फेलो थीं। उनसे मैंने हेल्थ जर्नलिज्म के बारे में काफी कुछ सीखा था। वो सबको काइजर के कैम्प ऑफिस में ले आईं। काइजर फाउंडेशन की सीनियर ऑफिसर पैनी डैखम पहले से ही मौजूद थीं। पैनी एक कुशल मैनेजर के साथ-साथ बेहद संवेदनशील मेहमाननवाज भी थीं। उन्होंने यह बताकर सबको खुश कर दिया कि हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गेर सिर्फ काइज़र से जुड़े पत्रकारों से मिलने के लिए खासतौर पर वहाँ आने वाले हैं। रिचर्ड गेर का नाम सुनते ही मेरे सामने हॉलीवुड फिल्म ..प्र्रिटी वुमन.. के कुछ दृश्य घूम गए। विदेशी फिल्मों की अल्प जानकारी के बावजूद अभिनेत्री जूलिया रोबर्ट्स को मैं काफी पसंद करता था। जूलिया ..प्रिटी वुमन.. की नायिका थी और रिचर्ड गेर उनके को-स्टार। इन दोनों की एक और फिल्म ..रन अवे ब्राइड.. भी मैंने देखी। रिचर्ड गेर के बारे में मेरी तब तक की जानकारी इन दो फिल्मों की वजह से ही थी। तब तक उनका जयपुर का खासा चर्चित शिल्पा शेट्टी चुंबन कांड नहीं हुआ था, जिसमें उनकी गिरफ्तारी तक के आदेश हो गए थे। अलबत्ता इतना मैं तब भी जानता था कि रिचर्ड गेर का हॉलीवुड में वही दर्जा है जो बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन का। दोनों हैं भी समकालीन। अमिताभ की पैदाइश चालीस के दशक की है और रिचर्ड गेर की 1949 की। सत्तर के दशक की शुरुआत में अमिताभ जंजीर और दीवार से फिल्मों में जबरदस्त एंट्री ले रहे थे। ठीक उसी सम में रिचर्ड गेर ..अमेरिकन जिगेलो.. के जरिए हॉलीवुड पर छाने की तैयारी में थे। दुनिया की मशहूर मॉडल सिंडी क्राफोर्ड से लम्बा इश्क लड़ाने के बाद उन्होंने शादी की। यह जानकारियाँ तो गाहे-बगाहे मुझे पहले भी मिल चुकी थीं, पर टोरंटो में वह बिलकुल नए रूप में सामने थे। यहाँ उनका परिचय एचआईवी-एड्स एक्टिविस्ट के तौर पर था। दोपहर एक बजे के करीब रिचर्ड गेर काइज़र के कैम्प में पहुँचे। फिल्मों में हमेशा उन्हें क्लीन शेव देखा था, पर अभी उनके चेहरे पर अच्छी खासी दाढ़ी-मूछ थी। इससे नीली जींस पहने इस शख्स के स्टारडम में कोई कमी नजर नहीं आ रही थी। गेर के पीछे-पीछे मुंबई की मशहूर उद्योगपति परमेश्वरन गोदरेज और उस वक्त स्टार टीवी के सीईओ पीटर मुखर्जी भी दाखिल हुए। हमें उनके आने की उम्मीद नहीं थी। खैर तीनों लोगों ने एक संक्षिप्त प्रेस कान्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने भारत में एचआईवी-एड्स जागरूकता को लेकर चलाए जा रहे ..हीरोज़ प्रोजेक्ट.. से जुड़ी कु जानकारियाँ दीं, जिसमें सबसे अहम बात यह थी कि इन तीनों सेलेब्रेटीज़ के आर्गनाइजेशन मिलकर इस प्रोजेक्ट को भारत में अभी दो साल और चलाएँगे। जाहिर है प्रोजेक्ट के आगे बढऩे से हिन्दुस्तान में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों और एचआईवी संक्रमित लोगों को फायदा पहुँचने वाला था। परमेश्वरन गोदरेज मुझे कुछ रिजर्र्व महिला लगीं। अलबत्ता पीटर मुखर्जी और रिचर्ड गेर बेहद जमीनी नजर आए। पीसी के बाद दोनों के साथ करीब एक घंटे तक मेरी व अन्य पत्रकारों की खूब बातचीत हुई। इस दौरान न तो पीटर ने कभी इस बात का अहसास होने दिया कि वे स्टार टीवी के सीईओ हैं और न ही रिचर्ड गेर ने कि वे हॉलीवुड के कितने बड़े स्टार हैं। पीटर यह भाँप चुके थे कि वहाँ मौजूद कई लोगों के मन में यह ख्वाहिश है कि वो रिचर्र्ड के साथ फोटो खिंचवाए। मुखर्जी ने बड़ी आत्मीयता से सबको अपनी तरफ से ऑफर किया कि आप लोग फोटो कराएँ। इस दौरान गेर ने बताया कि किस तरह से वे तिब्बत को आजाद कराने की मुहिम पर लगे हुए हैं। किस तरह चीन उनका विरोध करता है। गेर फाउंडेशन के बारे में बताया कि किस तरह उनका संगठन भारत में एचआईवी एड्स के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है। सारा कुछ बहुत मजेदार रहा। रिचर्ड ने मुझसे पूछा..हिन्दी के पत्रकार एचआईवी-एड्स के लिए क्या कर रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि उस वक्त तक खुद पत्रकार भी इस संक्रमण को लेकर खास जागरूक नहीं थे। अक्सर संक्रमित व्यक्तियों के सही नाम पते के साथ उनके बीमार होने की खबर को जोर-शोर से छाप दिया जाता है। खबर के असर से संक्रमितों के समाज से बहिष्कृत होने के उदाहरण भी उन्हें बताए। गेर को पहले से भी यह जानकारी थी कि भाषायी पत्रकारों में खासतौर पर हेल्थ, एचआईवी और यौनकर्मियों से जुड़ी खबरों को लेकर वैसी संवेदनशीलता नहीं है, जैसी कि अंग्रेजी पत्रकारिता में। उनकी राय थी कि कस्बा और जिला स्तर पर पत्रकारों को सही व संवेदनशील पत्रकारिता का प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है। दिलचस्प बात यह रही कि रिचर्ड ने इस दौरान फिल्मों पर कोई बात नहीं की। उन्होंने साफ कहा कि फिलवक्त सिर्फ एचआईवी। खैर तब तक परमेश्वरन गोदरेज घड़ी की ओर इशारा करने लगीं। पीटर और रिचर्ड ने बात खत्म की और निकल गए। बाहर दुनिया भर से आए सैकड़ों पत्रकार उनसे एक्सक्लूसिव बात करने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। भारत से गया हम पत्रकारों का दल खुशनसीब था कि इन सेलेब्रेटीज़ के साथ हमें एक घंटे का वक्त कुछ इस तरह मिला कि वे हमारे ही बीच के बंदे हों। थैंक्स टू ..काइजर.., थैंक्स पैनी और वेरी-वेरी थैंक्स टू कल्पना जैन...

Comments

  1. सुधीर की कल्पनाशक्ति और लेखन शैली को मैंने काफी करीब से देखा... एक शानदार संस्मरण देकर सुधीर ने फिर साबित कर दिया... घटनाओं को एक तार में बाखूबी कैसे पिरोया जाता है... नए बन रहे पत्रकारों के लिए एक सीख...
    श्रीपति त्रिवेदी...

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  2. बहुत अच्छा लिखा है। जो कुछ भी हम पढ़ना शुरू करते हैं उसे अगर अंत तक पढ़ जाएं तो लिखने वाले की सफलता है। बधाई हो सुधीर...

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  3. sudhir,Badhaai ho sacch likhne k liye.humne angrezi picture kabhi tumhaare nazariye se nahi dekhi par tumhari is sacchi bayaanbaazi ko salaam.confrences praayojit hoti hain jaan k aascharay hua.lekh ne saara waqt bandh k rakha.

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  4. bahut achche misr jee
    aapka sasmarn damdar hai badhai

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  5. aisa lag raha tha ki kahani abhi aur aage badegi kyunki jab padna shuru kiya to padte hi gaye...accha likha hai.
    Mujhe Big B se milna hai..kabhi milungi to isse kuch shabd chura lungi ha ha ha...

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  7. बहुत अच्छा लिखा है। बधाई हो.....

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  8. kya sir.....itna nostailgic treatment diya hai aapne....really its very very good....infact i am nobdy to comment like this...but still.
    vo kehte haina...ki har achchi cheez ki taarif karni chahiye...so maine b vahi kiya.....

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  9. नमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/

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