कोई सरकार बोलेगी कि हम भ्रष्ट नहीं


कृष्ण बिहारी नूर का एक शेर है-
नज़र मिला न सके, उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा, जो हो गुनाह के बाद
खुदा कसम उत्तराखंड हाई कोर्ट ने तो गजब कहा। जज साहब ने कहा-अगर भ्रष्टाचार पर सरकारें गिरने लगीं तो कोई भी सरकार पांच साल पूरे नहीं कर पाएगी। क्या खूब भरोसा था न्यायाधीश महोदय को। पूरे देश में एक भी सरकार ऐसी नहीं निकली, जिसका मुखिया सीना तानकर कह सकता कि जी मैं हूं, मेरी सरकार में भ्रष्टाचार नहीं होता। और कहे तो कौन कहे। भ्रष्टाचार का हाल तो यह है कि बाबू कहे जाने से नाराज होने वाली कौम के अफसर दफ्तर की कुर्सी से उठकर सीधे जेल जा रहे हैं। कुर्सी और पैसों का ऐसा मोह है कि जेल जाने का डर ही नहीं रहा। खासतौर पर कुछ ब्यूरोक्रेट्स तो मानो इसके लिए घोड़े पर सवार हैं।
अब लखनऊ का ही उदाहरण देख लीजिए। नोएडा में लैंडयूज का खेल करने वाले आईएएस साहब कुछ दिन पहले जेल चले गए। चीफ सेक्रेटरी रह चुकीं मोहतरमा पहले ही वहां जा चुकी हैं। फिर भी उनके बिरादर डर नहीं रहे। यहां घर, दफ्तर और बाजार का फर्क ही मिटता जा रहा है। अब बताइए जिस आदमी ने रिहायशी इलाके में सुकून से रहने के लिए घर लिया हो, उसे यह कैसे अच्छा लगेगा कि बगल के घर में शराब की दुकान खुले, होटल-रेस्त्रां चले या फिर दुकान-शोरूम बने। फिर भी नहीं जी, हम तो अवैध को वैध बनाकर रहेंगे। तो बनाइए... लेकिन ठहरिए, सोचिए, जैसे नोएडा वालों के दिन बहुरे हैं, वैसे आप के भी बहुर सकते हैं। एवरी डॉग हैव हिज डे। खैर, बात घोड़े पर सवार लोगों की हो रही थी। घुड़सवारों से पहले घोड़ों की भी बात कर ली जाए। भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बाद शायद शक्तिमान सबसे ज्यादा चर्चित घोड़ा हुआ है। देहरादून में एक विधायक जी ने कथित तौर पर उसे लाठी से मारा था। अब घोड़े को आखिरी सलामी देते अफसरों की फोटो अखबारों में छप रही है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के नेता उसकी मूर्ति लगवाने की बात कर रहे हैं, जो विधायक जी घोड़े पर हमले को लेकर जेलयात्रा तक कर आए हैं, वह भी आंसू बहा रहे हैं। शक्तिमान कोई सूरज का सातवां घोड़ा नहीं था। छोटे-छोटे बच्चे तक पूछ रहे हैं कि शक्तिमान को लेकर सब इतने दुखी क्यों हैं?
 तो साहब जब किसी राज्य की सत्ता एकसाथ दो घोड़ों पर सवार होती है तो ऐसा ही होता है। उत्तराखंड की कुछ दिनों से ऐसी ही हालत है। कभी लगता है बीजेपी तो कभी कांग्रेस। शहीद शक्तिमान महज एक घोड़ा नहीं, बिम्ब है, प्रतीक है सियासी रस्साकशी का। शक्तिमान के शोर में बहुत सी बातों पर चर्चा नहीं होती। इस घोड़े के चक्कर में उस हॉर्स ट्रेडिंग को दबाया जा सकता है, जो पहाड़ों पर चल रही है। इसमें नौ 'हॉर्सेज' की जान आफत में है। इस शोर से उस राजनीति को नंगा होने से ढका जा सकता है, जिसमें सरकार को बचाने के एवज में करोड़ों के 'टॉपअप' की बातें होती हैं। कुल मिलाकर मामला घोड़े और घास का है। सही भी है। घोड़े घास से दोस्ती कर लेंगे तो खाएंगे क्या। पर इस बार की घास ऐसी है कि जो न खाते बनती है और न उगलते। हाई कोर्ट है कि वह किसी को भी इतनी फुरसत नहीं दे रहा कि कोई घोड़े बेचकर सो सके। घोड़े को मारने वाले भी परेशान हैं और उसकी मौत पर दुख जताने वाले भी। शक्तिमान चिंतन जारी है। उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभा हो रही हैं। ट्विटर ट्रेंड हो रहे हैं और फेसबुक पर आंसू बहाए जा रहे हैं। कोई इस बात पर चिंता नहीं जता रहा कि हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा? देश में एक भी सरकार ऐसी नहीं, जो भ्रष्टाचार के मसले पर सत्ता छीने जाने की हालत में अपना टाइम पूरा कर सके। सवाल बड़ा कठिन है। जवाब अपने पास भी नहीं। हम भी शक्तिमान की बात करते हैं। उसकी तरफ से कैफी आज़मी का एक शेर-
वो तेग मिल गई जिससे हुआ है कत्ल मिरा
किसी के हाथ का इस पे निशां नहीं मिलता
अब देखने वाली बात है कि इस घोड़े के कत्ल में किसी को सजा मिलती है या नहीं।

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