वो सूखे झड़ते पत्तों को
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
उन चुर-मुर करते पत्तों की आह कभी न सुनता था
रोते थे, वो तड़पते थे ..पर हम को तो मालूम न था
उन तिनका-तिनका पत्तों को ये दर्द मुझी सा होता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
वो पत्ते थे, हाँ पत्ते थे पर क्यूं लगता है वो मै ही था
टूट के टहनी से गिरता फिर खुद को रौंदा करता था
रोके कौन और टोके कौन मैं कब किसकी सुनता था
सब कहते थे वो जुल्मी हैं पर मैं तो उन पर मरता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
उनकी एक झलक को मैं तब सौ-सौ सजदे करता था
वो तिरछे-तिरछे रहते थे ..मैं पीछे-पीछे चलता था
उनकी खुशबू, उनकी आहट मैं हर पल खोया रहता था
वो कहते थे, हैं नहीं मेरे..और मैं सुनकर रोया करता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
उन चुर-मुर करते पत्तों की आह कभी न सुनता था
रोते थे, वो तड़पते थे ..पर हम को तो मालूम न था
उन तिनका-तिनका पत्तों को ये दर्द मुझी सा होता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
वो पत्ते थे, हाँ पत्ते थे पर क्यूं लगता है वो मै ही था
टूट के टहनी से गिरता फिर खुद को रौंदा करता था
रोके कौन और टोके कौन मैं कब किसकी सुनता था
सब कहते थे वो जुल्मी हैं पर मैं तो उन पर मरता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
उनकी एक झलक को मैं तब सौ-सौ सजदे करता था
वो तिरछे-तिरछे रहते थे ..मैं पीछे-पीछे चलता था
उनकी खुशबू, उनकी आहट मैं हर पल खोया रहता था
वो कहते थे, हैं नहीं मेरे..और मैं सुनकर रोया करता था
वो सूखे-झड़ते पत्तों को मैं यूँ ही कुचला करता था
सुंदर और अर्थपूर्ण कविता ...
ReplyDeleteआभार ....
rocking.
ReplyDeleteसूखे पत्तों का आलंबन लेकर आपने समाज के उस चरित्र को उधेड़ा है जो मल्टी-नेशनल संस्कृति में आकंठ डूबा हुआ है और यहाँ लोगो के पास, माँ-बाप या किसी अपने के लिए समय नहीं है.
ReplyDeleteइन्हें बेकार(यूजलेस) समझ लिया गया है,निर्जीव मान लिया गया है.उनकी भावनाओ को दबाया जाता है ,कुचल दिया जाता है.
आगे बढ़ने,जीवन का चरम आनंद लेने में जुटे हम सभी प्रत्यक्ष अथवा परोक्षतः इस काम को अंजाम दे रहे हैं.
परन्तु हमने जिनका दिल दुखाया है उनकी पीड़ा का एहसास हमें उनके जाने के बाद ही होता है.
फिर कितना भी रोइए-मनाइए वो(अपने)फिर नहीं आते!!!!! .
इसी लिए तो कहा गया
.....कल तड़पना पड़े याद में जिसकी,रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो.....
बहुत सुन्दर, शानदार, अर्थपूर्ण और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteshukriya aap sabhi ko
ReplyDeleteशानदार, अर्थपूर्ण और बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआप की रचना 17 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
shukriya anamika
ReplyDeletephool khilte hain,log milte hain
ReplyDeletepatjhad main jo phool murjha jate hain
woh baharon ke aane se khilte nahin
kuchh log jo milkar bichad jate hain
woj hazaron ke aane se milte nahin
umr bhar chahe koi pukara kare unka naam
woh phir nahin aate,woh phir nahin aate
बहुत बढ़िया रचना...
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