फिल्म रिव्यू पर भरोसा करता तो बाजीराव देख ही न पाता
हाल ही में एक अखबार
में जयप्रकाश चौकसे का फिल्म रिव्यू पढ़ा। फिल्म बाजीराव मस्तानी के बारे में। चूंकि
काफी अरसे से उनको पढ़ता रहा हूं तो लगा जो लिखा है, सही ही होगा। रिव्यू पढ़कर लगा
कि काफी कमजोर फिल्म है, नहीं देखनी चाहिए। फिर भी एक दोस्त ने कहा तो देखने पहुंच
गया। यकीन मानिए बड़ी कोफ्त हुई चौकसे जी के रिव्यू के बारे में सोचकर। यह ठीक है कि
संजय लीला भंसाली की यह फिल्म हम दिल दे चुके सनम जैसी नहीं, पर यकीन मानिए उन्हीं
की देवदास से कहीं बेहतर है। मैं दावे से कह सकता हूं कि एक बार देखने के लिए लिहाज
से फिल्म अच्छी है। खैर चौकसे जी का अपना आकलन है और मेरा अपना।
आइए बात करते हैं फिल्म
की खूबसूरती के बारे में। यकीनन रणवीर, दीपिका और प्रियंका तीनों ने गजब ढाया है। एक
योद्धा, एक प्रेमी और पति तीनों ही रोल में रणवीर छाये हुए हैं। मुझे पूरा यकीन है
कि सर्जरी और झुर्रियों से भरे सलमान, आमिर और शाहरूख के लिए अब जल्द ही करैक्टर आर्टिस्ट
के रोल गढ़े जाने लगेंगे। खुद के प्रोडक्शन हाउसेज में वह जरूर हीरो बन रह सकते हैं।
बतौर हीरो अब आने वाला वक्त रणवीर जैसे स्टार का ही होगा। शारीरिक सौष्ठव और डॉयलाग
में भी रणवीर अब कमजोर नजर नहीं आते। हालांकि फिल्म में बाजीराव का नृत्य करना कुछ
अखरा पर हिन्दी फिल्म है, मसाले तो डालने ही पड़ेंगे। दीपिका और प्रियंका के रोल की
तुलना हम देवदास की ऐश्वर्या और माधुरी दीक्षित से करें तो भी बाजीराव भारी पड़ती है।
दीपिका और प्रियंका दोनों ने ही बेहतरीन एक्टिंग की हैं और दोनो ही बराबर से खूबसूरती
लगी हैं। अलग अलग हिस्सो में कहीं प्रिंयका बीस नजर आती हैं तो कहीं दीपिका।
भंसाली ने मराठा इतिहास
के इस हिस्से पर बेहतरीन स्क्रिप्ट लिखवायी है। इतिहास की बेहतर समझ न रखने वालों को भी फिल्म को समझने में कोई खास
दिक्कत नही होगी। हां संगीत के मामले में जरूर संजय लीला अपनी पुरानी फिल्मों को नहीं
छू पाए हैं। हम दिल दे चुके और देवदास का म्यूजिक ज्यादा बेहतर था। दूसरी खटकने वाली
बात सपोर्टिंग स्टार्स के रोल का ठीक से न उभर पाना है। आप शोले, मुगल ए आजम या थ्री
इडियन जैसी किसी भी सुपर डुपर हिट फिल्म को देखिए। उसमें छोटे से छोटे रोल को भी उभारा
गया। असल में फिल्म तभी ब्लॉक बस्टर होती है जब उसमें पूरी टीम सौ फीसदी करती नजर आए।
खैर इसलिए यह फिल्म वन टाइम वॉच है, सभी का काम बेहतर होता तो यकीनन बहुत बड़ी हिट
होती बाजीराव मस्तानी। खैर मै कोई फिल्म समीक्षक तो हूं नहीं। मैने वो लिखा जो मुझे
लगा। जरूरी नहीं कि आपको पसंद आए। हां इतना जरूर कहूंगा कि समीक्षकों को जरूर पब्लिक
पल्स समझनी चाहिए। जरूरी नहीं कि जो फिल्म उन्हें पसंद न आए वह आम लोगों को भी पसंद
नहीं आएगी।
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