देश को जोड़ते हैं गोलगप्पे
परवीन शाकिर का शेर है-
जंग का हथियार तय कुछ और
था
तीर सीने में उतारा और है
हिन्दुस्तानियों का जवाब नहीं। कुछ दिन पहले एक ब्रिटिश सांसद ने रूस-यूक्रेन मसले पर भारत के रुख पर गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने ट्ववीट में लिखा कि इस मामले में तो भारत को दी जाने वाली ब्रिटिश मदद बंद कर देनी चाहिए। इस पर भारतीयों ने उन्हें खूब ट्रोल लिया। सबसे मजेदार ट्वीट तो वो था जिसमें ब्रिटेन के सांसद से कहा गया था कि जितनी तुम अंग्रेज साल भर में मदद करते होगे, उससे कहीं ज्यादा के तो रोजाना हमारे देश की महिलाएं गोलगप्पे खा जाती हैं।
गोलगप्पे को बताशा, पुचका,
पानी पूरी या गुपचुप किसी भी शब्द से पहचानें लेकिन उनके नाम में फाफड़ा, ढोकला, खाखरा
या हांडवो जैसी आक्रामकता का अहसास नहीं होता। इसके बावजूद ब्रिटिश सांसद को टांगने
के लिए जिस तरह से आम लोगों ने गोलगप्पे का हथियार की तरह इस्तेमाल किया, उससे एक बात
तो साफ हुई। वो यह कि पानी पूरियों के स्वाद की मारक क्षमता सार्वभौमिक है। इसका विस्तार
सिर्फ हमारे देश तक नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय है। मुझे तो करीब पंद्रह साल पहले टोरंटों
में ही यह बात समझ आ गई थी। जब एक कनाडाई डॉलर का एक पानी भरा बताशा खाया था। पता चल
गया था कि पुचके की महिमा अपरंपार है। इसके इतिहास की बात करें तो एक किवदंति है। द्रौपदी
जब विवाह के बाद ससुराल आईं तो कुंती ने उन्हें रसोई में थोड़ा सा खाने पीने का सामान
दिया और कहा कि इससे ऐसा कुछ बनाओ कि पांचों पतियों का पेट भर जाए। कहा जाता है कि
तब उन्होंने पानी पूरी बनाई थी। कहा यह भी जाता है कि गोलगप्पों का प्रचलन सबसे पहले
मगध यानी बिहार से शुरू हुआ था। वैसे जहां कहीं भी बताशे में आलू भरा हो तो समझ जाना
चाहिए कि वहां की चाट पर बिहारी प्रभाव है। वैसे हम इसके इतिहास पर न ही जाएं तो बेहतर।
गोलगप्पों जैसी लाजवाब स्वादिष्ट चीज पर किसी भी किस्म का विवाद खड़ा करने से क्या
फायदा। पहले से ही बहुतेरे
विवाद हैं। मसलन कहां
के ज्यादा अच्छे या इसे कैसे
बनाना चाहिए।
बताशों में मटर भरनी
चाहिए या आलू। प्याज
डाला जाए या न
डाला जाए। मटर भरें
या छोले या फिर
काला चना। हरिद्वार की
एक पतली गली में
दादा जी के जमाने
की एक चाट की
दुकान है-जैन चाट
भंडार। यहां प्याज तो
दूर की बात है,
आलू तक का इस्तेमाल
नहीं किया जाता। जैन
साहब का दावा है
कि उनकी चाट आयुर्वेदिक
है, पेट की कई
तकलीफों को दूर करने
वाली। उनके बताशों का
पानी या जल जीरा दूर
दूर तक जाता है।
अब अगर यही बताशे
आप उदयपुर में खाओ तो
वहां आपको आलू के
साथ प्याज भरकर खिला सकते
हैं। प्याज लहसुन से परहेज करने
वालों को यह बात
नागवार गुजरती है। मिसाल के
तौर पर आप किसी
लखनवी को प्याज आलू
भरा पानी का बताशा
पेश कर दें तो
वह बड़ी शराफत से
पूछ सकता है कि
अमां मियां, यह क्या गुस्ताखी
है, बताशे में प्याज़। हालांकि
जब दिल्ली के गोल मार्केट
या बंगाली बाजार में गोलगप्पे खाने
जाएंगे तो वहां शायद
आपको आलू प्याज वाली
पानी ही मिले। वह
भी सूजी से बनी
हुई अंडाकार। कोलकाता के पुचकों और
इंदौर के बताशों में
मसाले आलूमटर डालते हैं। कहीं कही
पानी में बेसन की
बूंदी भी डाल दी
जाती हैं। उड़ीसा वालों
ने तो इसे अलग
ही नाम दे रखा
है-गुपचुप। यानी बिना ज्यादा
शोर के मुंह में
घुल जाने वाले। ज्यादातर
गोलगप्पा शौकीनों का मानना है
कि असली स्वाद तो
खोमचे या ठेले वालों
के यहां ही आता
है, जहां बिना ग्लब्स
पहने हुए चाट वाला
अपने नाखून भोंक भोंक कर
बताशे में छेद करता
है। हालांकि बताशे खिलाने में अब काफी
नफासत देखने को मिलती है।
फाइव स्टार होटलों में पानी पूरी
शॉट्स मिलते हैं। वहां कई
तरह के मसालेदार पानी
परखनलियों और कुछ जगहों
पर सीरींज तक में सर्व
किए जाते हैं। एक
पुरानी फिल्म में चरित्र अभिनेता
ओमप्रकाश गोलगप्पों
में शराब भरकर खाते
दिखे थे। कुल मिलाकर गोलगप्पा इस देश की संस्कृति
का हिस्सा है। चाट का राजा है और चटोरों के चटखारों का सबसे बड़ा जरिया। देश के हर
राज्य में यह खाने को मिल जाएगा। दुनिया में भी जहां भारतीय हैं, वहां पानी का बताशा
है। बाजार में नहीं तो उनके उत्सवों, तीज त्योहार व दावतों में खासतौर पर बनाया जाता
है। भारतीयों में आपस में कई मुद्दों पर मतभेद होता है लेकिन पानी पूरी का स्वाद पूरे
देश को जोड़ता है। इसीलिए जब देश के मान सम्मान की बात आई तो सोशल मीडिया पर गोलगप्पे
के हमले से ब्रिटिश सांसद को दौड़ा लिया गया। चलते चलते इक़बाल अहमद इक़बाल का यह शेर
गोलगप्पों की तारीफ में और बात खत्म कि-
हम जोड़ने वाले हैं फ़लक और ज़मीं को
मंदिर की या मस्जिद की सियासत नहीं करते
Comments
Post a Comment