उसका जाना: एक कालखंड का अंत

वो मेरा सबसे करीबी, सबसे अजीज़ और हमेशा साथ रहने वाला था। हर वक्त ऐसे मेरे साथ चलता, जैसे साँसें। सोते जागते, उठते-बैठते, यहाँ तक कि बाथरूम और टॉयलेट में भी। वो यानी मेरा नोकिया-एन 72 मोबाइल। काले रंग का था वो। उसका नीला स्क्रीनसेवर हमेशा मेरी आँखों में बसा रहता। 17 सितम्बर 10 को महज पांच साल की उम्र में वो मेरा साथ छोड़ गया। या यूँ कहिए कि मेरी गलती से बेचारा परलोक सिधार गया। पिछले कुछ समय से मैं उसे कमीज के बजाए जींस की पिछली जेब में रख रहा था। बुरा हो उन वैज्ञानिकों के उल्टे-सीधे रिसर्च पेपर्स का जिन्हें पढ़-पढ़कर मैंने ऐसा किया। वैज्ञानिक शोध कहते हैं कि मोबाइल ऊपर की जेब में रखने से इसका सीधा असर दिल पर पड़ता है। मोबाइल तरंगें और वाइब्रेशन आप को दिल का मरीज बना सकती है। मुझे भी पता नहीं क्या खुराफात सूझी? दिल का मर्ज देने वाली तमाम दूसरी चीजों को छोड़ मैंने अपने प्यारे मोबाइल को ही दिल से दूर कर दिया। विश्वकर्मा पूजन के वक्त दफ्तर में धम्म से जमीन पर बैठ गया। ध्यान ही नहीं रहा और बेचारा नोकिया चकनाचूर हो गया। मैं अवाक रह गया।
भगवान विश्वकर्मा की ओर देखा और मन ही मन कहा-हे भगवान क्या गलती हो गई...
मैं इतने जोर से बैठा था कि मोबाइल की आत्मा रूपी सिम और प्राण वायु बैटरी को छोड़कर बाकी सारा नश्वर शरीर स्वर्गवासी हो गया। आसपास बैठे लोग मातमपुर्सी में जुट गए। एक-दो साथियों ने ध्वस्त मोबाइल को नोकिया केयर के वेंटीलेटर पर ले जाकर मरी चुहिया को गोबर सुंघा कर जिलाने जैसी कोशिश भी की। पर सब नाकाम। अब यादों के सिवा कुछ नहीं था। एक-एक करके तमाम पुरानी बातें याद आने लगीं। कितने शौक से मैने उसे तेरह हजार सात सौ रुपए में खरीदा था। बेटा शुभांग बड़ा हो रहा था। उसे भी मेरा मोबाइल बहुत पसंद था। वह कभी वीडियो बनाता तो कभी गेम खेलने लगता। अक्सर मोबाइल को लेकर वह मुझसे डांट खाता था। वैसे मैं खुद भी इस मोबाइल को लेकर अक्सर डांटा जाता। हमारी गृहलक्ष्मीजी की आदत है कि वह मोबाइल पर बात करते वक्त बड़ी गहराई मेरी फेस रीडिंग करती रहती हैं। चेहरे के भावों को देखकर उस अदृश्य आवाज के स्रोत को जानने की कोशिश करना उनका पसंदीदा शगल है। बातचीत के वक्त मेरा खिला चेहरा, चहकती आँखें और हल्की मुस्कराहट नजर आती तो खैर नहीं। अगर मैं अपने मनोभावों को छिपाने की कोशिश भी करता तो कभी उनकी सूक्ष्म निगाहों की एक्स-रेज से बच पाया। उन्हें यह बिलकुल पसंद नहीं कि कोई महिला मुझे फोन करे। अक्सर मोबाइल झगड़े की वजह भी बन जाता। मोबाइल की डेड बॉडी देखकर मैं फिर सोचने लगा कि श्रीमती जी शायद अब जरूर खुश होंगी। ठीक उसी तरह जब मैंने अपनी पुरानी बजाज चेतक स्कूटर दान की थी। तब उन्होंने चैन की लम्बी साँस ली थी। मोबाइलफोन की तरह ही श्रीमती जी को मेरी स्कूटर की पिछली सीट से बेहद एलर्जी थी। उस पर बैठते वक्त हमेशा उनके मन में एक नकारात्मक भाव आता कि शादी से पहले जाने कितनी इस पर बैठी होंगी।
खैर, स्कूटर की बात फिर कभी। अभी तो हमें अपने मोबाइल को ही श्रद्धांजलि देनी है। जाने कितनी मिस कॉल्स उसमें दर्ज थीं। जाने कितनी टॉक वैल्यू उसमें खर्च हुई। कभी हिसाब करने को मन ही नहीं किया। मुझे याद है कि किस तरह अपने प्यारे मोबाइल को एक बार जब मैंने बेसाख्ता चूम लिया तो आसपास देखने वालों ने मुझे अजीब सी नजरों से देखा था। उन्हें लगा कि जरूर फोन पर कोई रासलीला हुई है। हकीकत यह थी कि उस दिन फोन पर बताया गया था कि मुझे यूरोप जाने का वीजा मिल गया है। वो कितना अजीज़ था, इसका अंदाज आप इसी से लगा सकते हैं कि बात करते-करते अक्सर वह गरम हो जाता। इतना गरम कि कान जलने लगते, फिर भी मैं उसे नहीं हटाता था। कभी-कभी सात-आठ किलोमीटर की पैदल यात्रा हो जाती और मुझे पता भी नहीं चलता कि मैं कितनी दूर चल आया हूं। ऐसा था मेरा एन-72...
मोबाइल और भी जाएंगे पर अब वो कभी नहीं आएगा। असमय उसका जाना, जाने क्यों मुझे एक कालखंड के अंत सरीखा लग रहा है...
मेरी यादें, मेरे अफसाने और वो रूठने-मनाने की बातें लेकर वो सदा के लिए चल बसा...

Comments

  1. Aap ka dukh main samajh sakta hun,Chailiye mann chhota mat kijiye.
    Vaise Bhabhi ji ko badhai
    neeraj

    ReplyDelete
  2. sir mobile to chala gaya par wo jata jate bhi hmare liye apni khubsurat yaadon se judi ye rachna de gaya... ab aapko is rachna k liye badhai... subject koi ho pr agr use emotions se likha jaye to wo khubsurat ho jata hai...

    ReplyDelete
  3. क्या अंदाज़े बयां है हुज़ूर का कि निर्जीव मोबाइल में भी जान डाल दी.!!!!! कितनी अच्छी बात है की इस निर्जीव मोबाइल के काले रंग को आपने इतनी खूबसूरती से बयान किया है.
    "थैंक गाड नो रेशिअल डिसक्रीमीनेशन हियर!!!!"
    पर क्या ये कहना सही होगा कि मोबाइल निर्जीव होता है? ठीक है अगर मान लिया जाय कि यह निर्जीव है तो भी यह बात तो तय है कि यह वफादार तो होता ही है वरना आप भाभी जी से कुछ छुपा भी न पाते.
    जहाँ तक आपने उसके साथ, उससे लगाव के महज पांच साल की बात कर दी तो मैं ये कहूँगा कि इस आधुनिक युग में तो लोगों को पांच मिनट में चीजों से लगाव हो जाता है और काम न बना तो घृणा होने में तो पांच मिनट भी नहीं लगते. उस बेचारे ने तो पूरे पांच साल आपका अच्छे से साथ निभाया है..वास्तव में वह वफादार था और शायद उसके दिल में आपके लिए कुछ और हो या न हो प्रेम तो था ही.वरना आजकल कुछ चीनी मोबाइल तो अपने मालिकों की हालत धोबी के कुत्ते जैसी कर देते हैं दुकान से घर लाइए और आन करते ही टाएँ-टाएँ फिस्स!! और आप न घर के रहे न घाट के.?
    और आपने अपने इस वफादार साथी को ऐसी जगह दी....उफ़!! यह तो ज़ुल्म है किसी के प्रेम का फायदा उठाने जैसा है.आप विज्ञान का हवाला दे रहे हैं तो बता दूँ कुछ वैज्ञानिकों ने दिल से ज्यादा मोबाइल के खतरे उस जगह के लिए बताये हैं जहाँ हुज़ूर ने बेचारे N-72 को खोंस रखा था.
    वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है कि पैंट कि जेब में मोबाइल रखने से उससे उत्सर्जित विकिरण हमारी पौरुष क्षमता को 33% तक कम कर देता है.फिर शायद आपके N-72 ने यह बात जान ली होगी और आपको किसी क्षति से बचाने के लिए ईश्वर से अपने अंत की कामना की होगी,इस तरह देखें तो उसके टूट जाने में आपका कोई दोष नहीं है उसने तो आत्मोत्सर्ग करके आपके पौरुष की रक्षा की है.ये तो बलिदान है उसका!! आप चाहे कितना भी प्रयास करते उसे बचना था ही नहीं! आपको उसके चल बसने का अफ़सोस है तो मैं ये बता दूँ कि वह अपनी आत्मा यानि सिम कार्ड तो आपके पास ही छोड़ गया है अगर उसकी आत्मा आपके लेख को पढ़ रही होगी तो निश्चय ही बहुत प्रसन्न होगी और वह जल्द ही दूसरा शरीर धारण कर (नोकिया,सैमसंग,मोटोरोला के किसी मॉडल में.......) आपके पास आयेगा.ज़रूरत तो है की आप उसे पहचान ले और अपना लें.
    इसी में आप दोनों की ख़ुशी है!!!!!!!!!

    ReplyDelete
  4. tu to chala gaya apni yaadien chod gaya......

    ReplyDelete
  5. haan, tomhari creativity zor maar rahi hai. Its good.
    all the best

    ReplyDelete
  6. very good sir,
    aapki aabiti ne to meri bhi dukhti rag pe haath rkh diya.....
    shadi se pehle k din yaad krwa diye....pd kr romanchit ho gya.....

    ReplyDelete
  7. Hardik shradhanjali. ek lambi dosti ka khatma,par apka lekh kahi se dil ko kareeb se chhoo gaya ki mobile bhi to parivar ka ang ban gaya hai.Uske bagair shayad ek din bhi bitana mushkil hai.Asha hai jaldi hi ek naye mobile ki kilkaria apke angan me gunjegi.

    ReplyDelete
  8. Long five Years .. . . .

    Chaliye Is Mobile Ko Sachi Shrandhli Dijiye Iske Chothe Pe Chiken Ka Bhoj aur Thervi Pe Mutton Bhoj Hona Chaiye .....

    ReplyDelete
  9. again badia effort sir...
    keep going!

    ReplyDelete
  10. Europe kis silsile mein aur kab jaa rahe ? lekh badhia laga.

    ReplyDelete
  11. badhiya, vastuo ke manvikaran ke liye kaffka ki kahaniyo per bhi nazar daale

    ReplyDelete
  12. bahut accha likha hai sir lag raha tha ki koi film chal rahi ho .. hum bhi n 72 use karte the wo bhi hume chord gaya sir means kho gaya..isliye hum aapka dard aur bhi acchhi tareh se samajh sakte hai..sir

    ReplyDelete
  13. Vakai .. Maza aa Gaya, Aaj Fir Se Padha.... Aur Dil Ko chu Gaya ...

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular Posts