बच्चो...आप भी सीखो इन ...स्पेशल चिल्ड्रन... से

यह प्यारी नन्ही गुडिय़ा ब्रेल लिपि में लिखी एक किताब पढ़ रही थी। उसकी एक फोटो को मैंने फेसबुक पर डाला। तुरंत मेरे मित्र कवि सर्वेश अस्थाना का एक कमेंट आया। कविता की शक्ल में। लाइनों पर गौर करिए-



अंतरमन की आंखों से, हमको तो -कुछ दिखता है
स्पर्श से हम पढ़ लेते हैं, हम को को कु लिखता है
ये कोमल नाज़ुक हाथ मेरे, आंखों का का निभाते हैं
वो अक्षर पढ़ते जाते हैं, हम भाव समझ मुस्काते हैं...






और सच में अगर कोई भी व्यक्ति संवेदनशील है तो श्रीगंगानगर के श्री जगदंबा अंध विद्यालय के इस परिसर में रहने वाले ..स्पेशल चिल्ड्रन.. से मिलने के बाद भावुक हुए बगैर नहीं रह सकता। यह बच्चे वाकई विशिष्ट हैं। इसलिए नहीं कि उनमें किसी तरह की अपंगता है। बल्कि इसलिए कि उनमें कोई न कोई ऐसी विशिष्टता है जो आम बच्चों में नहीं होती। उनके इस खास किरदार के लिए परमहंस स्वामी ब्रह्मदेव जी और उनकी टीम वाकई काबिलेतारीफ है।
संस्थान अपना 30वां स्थापना वर्ष मना रहा है। दो और तीन अक्टूबर को यहां के पुराने विद्यार्थियों का महासम्मेलन भी होने जा रहा है। ऐसे में विद्यालय के प्रधानाचार्य प्रतापसिंह के आमंत्रण पर मैं वहां गया। एक लाइन में अगर इस विद्यालय को परिभाषित करना हो तो हम कह सकते हैं..देश में मूक, बधिर और नेत्रहीन बच्चों के गिने चुने विद्यालयों में से यह एक है..। देश के विभिन्न राज्यों के ..स्पेशल चिल्ड्रन..यहां पढऩे आते हैं। अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सभी। कोई फीस नहीं। जो देने की स्थिति में हैं, वह अपने बच्चों के अलावा दूसरे का खर्चा भी उठा सकता है। जो नहीं दे सकता, वह ऐसे ही अपना बच्चा यहां रख सकता है। नेत्रहीन बच्चों के लिए दसवीं और मूक-बधिर बच्चों के लिए आठवीं तक की पढ़ाई यहां कराई जाती है। ब्रेल लिपि की किताबें, सांकेतिक भाषाओं को समझाने वाले यंत्र, छात्रावास, भोजन और इन सबसे बढ़कर शिक्षकों और देखभाल करने वालों का प्यार इस विद्यालय की खासियत है। स्वामी ब्रह्मदेव ने बताया-..ये बच्चे सिर्फ प्यार की भाषा समझते हैं, डांट-पिटाई से वह टूट जाते हैं..आमतौर पर घरों में इनकी बात समझ न पाने के कारण घर वाले ही उनसे दुव्र्यवहार करते हैं, ऐसे में वह चिड़चिड़े या गुस्सैल हो जाते हैं..पर यहाँ रहने वाले बच्चों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं।
मैंने कई मूक-बधिर बच्चों को गणित के खास फार्मूलों के जरिए कठिन से कठिन सवालों को हल करते देखा। वह उंगलियों व संकेतों की भाषा से अपने टीचर की बात व सवाल समझ रहे थे। फिर उन्हें ब्लैकबोर्ड पर हल कर देते। मेरे जन्म की तारीख के दिन कौन सा दिन था, यह एक बच्चे ने चुटकियों में सही-सही बता दिया। एक दस साल की नन्ही नेत्रहीन बच्ची ने ब्रेल लिपि में लिखी किताब का पाठ पढ़कर सुनाया। उसकी होशियारी दंग करने वाली थी। यहां रोजी-रोजगार के लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है। मूक-बधिर लड़कियों की एक टोली हंसते-खिलखिलाते हुए बैग बनाने में जुटी थी। उनकी टीचर ने बताया कि यह लड़कियां न सुन सकती हैं और न बोल सकतीं हैं पर खुद को अभिव्यक्त करना उन्हें अच्छी तरह से आता है। कोई भी व्यक्ति अगर कुछ देर उनके साथ रह जाए तो वह उनकी सारी भाषाएं समझ सकता है। यह सब देखकर मुझे लगा कि अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ यहां आकर इन विशिष्ट बच्चों को दिखाना चाहिए। यह बोल, सुन और देख नहीं सकते। फिर भी अपने टीचर्स की प्यार भरी भाषा से सबकुछ समझ जाते हैं। डांस टीचर सनी ने बताया कि यहां के मूक-बधिर लड़के बहुत अच्छे डांसर हैं। जिन कठिन स्टेप्स को सामान्य लड़के सीखने में महीना भर लगाते हैं, वह यह चार दिन में ही कर लेते हैं। बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था भी बहुत दुरुस्त है- अलग-अलग समय पर लंगर चलते हैं। ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर भी यहां है। यह सेंटर नेशनल स्कूल फॉर द विजुअली हैंडीकैप्ड देहरादून से संबद्ध है।

Comments

  1. in bachon ke hoslon ko bayaan karne ke liye mere pass sabd nahi hain.....

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  2. अच्छी पोस्ट.सच में देखे तो हर व्यक्ति में कोई न कोई ऐसा गुण होता है जो आपको विशेष बनाता है. वर्तामान तैराकी के कांस्य पदक विजेता प्रशांत के शब्दों में "हर इंसान में कोई न कोई कमी है. हाँ फ़र्क़ ये है मेरी कमी दिखती है कि मेरा एक हाथ नहीं है " किसी बच्चे को प्रोत्साहित करना बहुत बड़ा शुभ कार्य है. पोस्ट http://understanding-psychology.blogspot.com/2010/09/aptitute.html पढ़े.

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  3. सुधीर भाई जो भी करते हैं; लिखते हैं; सब लाजवाब, पर इस बार जिनके बारे में लिखा है वो खुद ही लाजवाब हैं | इन्ही बच्चों के लिए गुलज़ार जी की लिखी दो पंक्तियाँ
    " हम हैं न दोस्त, तुम सुन लो हम देख लेंगे"

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  4. बहुत अच्छा प्रयोग लगा तुम्हारा.मैं इसे रेडियो में अपनाऊंगी.बच्चों को शुभकामनाएं .

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  5. प्रिय मित्र, सुधीर, दरअसल खबर की चपेटमें हम पत्रकार अक्सर संवेदनहिनता के शिकार हो जाते है. लेकिन,आपने अपने अंदरके संवेदनशील इन्सान को हमेशा जिंदा रखा है...किंतु यही आपकी अलग पहचान है...अंध बच्चोंकी जिंदगी को समझना, महसूस करना इसी पहचान का एक अंग है. मेरे मार्गदर्शक और संपादक कुमार केतकरजी हमेशा कहते है, किसी कि जिंदगी सवारना, हौसला बढाना ही आज कि तारिखमें असल जर्नालिजम है...सही मायनोंमे सुधीर आज उसपर खरे उतर रहे है...आशा करता हुँ कि आपका मेक्सिको टूर सफल रहा होगा...मुझे पुरा यकिन है कि, मेक्सिको कँन्फ्रन्सने आपके अनुभवों का दायरा और भी विस्तृत किया होगा...
    आपका
    शेखर

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