...तो साबित करिए कि नोएडा सियासत का मगहर नहीं

बहुत पुरानी मान्यता है। काशी में मरोगे तो स्वर्ग जाओगे, मगहर में मरे तो आदमी अगले जनम में गधा बनता है। यह बात कबीर ने भी सुनी थी। उस वक्त काशी का यह हाल था कि देश भर के बुजुर्ग काशी में आकर इकट्ठे हो जाते थे और अपनी मृत्यु का इंतजार करते थे। मरकर सीधे स्वर्ग जाने की चाहत में। कबीर दास जी को जब लगा कि उनकी मृत्यु करीब है तो उन्होंने मगहर जाने का फैसला किया। उनके अनुयायी परेशान हो गए और उनसे पूछने लगे कि ऐसा क्यों? जवाब में कबीर दास जी ने कहा-
ज्यों काशी त्यों ऊसर मगहर राम बसै हिय मोरा
जो कबीर काशी मरै रामहिं कौन निहोरा
मतलब मैं जीवन भर राम का उपासक रहा। अब अगर मैं काशी में मरकर स्वर्ग जाता हूं तो फिर इसमें उनका क्या अहसान रहा। मैं तो मगहर में ही मरूंगा। अगर राम जी में सच्चाई और प्रताप होगा तो वहां मरकर भी मैं स्वर्ग ही जाऊंगा। यकीनन कबीर स्वर्ग ही गए होंगे। वह वाकई महान थे। उनका एक-एक दोहा ऐसा है, जिस पर शोध ग्रन्थ बन सकते हैं। मसलन मुझे उनका एक दोहा बहुत पसंद है-सज्जन से सज्जन मिलें होवें दो-दो बात, गहदा से गहदा मिलें खावें दो-दो लात। तो भइया अपनी कोशिश तो यही रहती है कि दूसरे किस्म के लोगों से जितना बच सको, बचो। लड़ाई में क्या रखा है। फिर भी मित्र हैं तो कभी-कभी नाराज हो ही जाते हैं। लात वात की नौबत तो नहीं आती पर बातों की मार होती है। ऐसे ही एक मित्र नोएडा में रहते हैं। उनकी नाराजगी यह है कि मैं दिल्ली तक जाता हूं पर उनके घर नहीं जाता। एक दिन गुस्सा गए और बोले कि तुम क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हो जो नोएडा नहीं आओगे? बड़ा सटीक पंच मारा था भाई ने। यूपी के मुख्यमंत्री अब वाकई नोएडा नहीं जाते। इस डर से कि वहां गए तो चुनाव हार जाएंगे। यह अंधविश्वास क्यों है? 
यह शोध का विषय है पर लोग बताते हैं कि चुनाव से पहले स्व़  वीर बहादुर सिंह नोएडा गए थे तो वह चुनाव हार गए। उसके बाद एनडी तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मायावती और राजनाथ सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ था। तभी से यह मान लिया गया है कि मुख्यमंत्री रहते जो नेता नोएडा जाता है, वह चुनाव हार जाता है। यूपी में गांधी, नेहरू, लोहिया से लेकर अंबेडकर तक के विचारों पर चलने वाले मुख्यमंत्री हुए हैं। ज्यादातर टीचर थे और अभी वाले तो एनवायरमेंटल इंजीनियर हैं। सवाल उठता है आखिर यह अंधविश्वास क्यों? नोएडा मुख्यमंत्रियों के लिए अभिशप्त क्यों है? अभिशप्त है भी या किसी पोंगा पंडित की फैलाई हुई अफवाह से नेता डरे हुए हैं। वैसे नोएडा दूसरे कारणों से नेताओं के लिए जरूर खतरनाक रहा है। जैसे अभी यादव सिंह और जमीनों से जुड़े घोटालों को लेकर है। नोएडा इतना खतरनाक है कि मुख्यमंत्री वहां न भी जाएं तो भी हरवा देता है। मिसाल के तौर पर नोएडा के निठारी कांड में काफी बच्चों की हत्या हुई थी। देश-दुनिया में हल्ला मचा था फिर भी उस वक्त के मुख्यमंत्री खुद वहां नहीं गए। नोएडा न जाकर भी वह चुनाव हार गए। कबीर के दोहों की याद इसीलिए आ रही है क्योंकि अंधविश्वास अच्छी बात नहीं। यूपी में इस वक्त देश के सबसे युवा और पढ़े लिखे मुख्यमंत्री हैं। ऐसा हो सकता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वह अपनी व्यस्तता या संयोगवश नोएडा न गए हों। पर अब इतनी चर्चाओं के बाद उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह चुनाव से पहले नोएडा जाएं। यह साबित करने के लिए कि नोएडा सियासत का मगहर नहीं और वह खुद अंधविश्वासी नहीं। अगर उनकी सरकार अच्छा काम करेगी तो जनता उन्हें क्यों नहीं जिताएगी। उन्हें खुद पर भरोसा करना होगा। आखिर कबीर ने भी तो मगहर जाने का साहस अंधविश्वासों को खत्म करने के लिए ही किया था न। यह मौका अब यूपी के सीएम के पास है। वैसे बात खराब लग रही हो तो कबीरदास जी के ही इस दोहे के साथ बाय बाय-
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय|

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