पांच दिन यूरोप में


यह एम्सटर्डम है। हालैंड की राजधानी। 2006 की वल्र्ड एड्स समिट में जाने से पहले ही हमने यूरोप घूमने का प्लान बना लिया था। राजस्थान पत्रिका के हमारे साथी हरेन्द्र ने एम्सटर्डम, डेन हॉग और पेरिस में होटल की बुकिंग करा ली थी। वैसे हमें जर्मनी भी जाना था पर वक्त की कमी के कारण वो बुकिंग कैंसिल करानी पड़ी। पांच दिन की यह यूरोप यात्रा पूरी तरह से हमारी जेब पर निर्भर थी। हम तीन थे मैं हरेन्द्र और लोकसत्ता मुंबई के शेखरदेशमुख। हम तीनों ने ही कनाडा यात्रा के दौरान रोजाना मिलने वाले खर्च को बचाया, कुछ पास से मिलाया और यूरोप घूम लिया। दरअसल केएलएम एयरलाइंस की जिस फ्लाइट से हम दिल्ली से टोरंटो गए, उसको आते और जाते वक्त एम्सटर्डम में ब्रेक लेना था। लिहाजा हमने उसी टिकट में थोड़ा संशोधन कराकर पांच दिन का प्रोग्राम बना लिया। चूंकि यह पहली विदेश यात्रा थी और कोई टूर आपरेटर या गाइड भी साथ नहीं था, इसलिए काफी कुछ सीखा। हालैंड में तो खैर लोग अंग्रेजी बोलते थे लेकिन पेरिस में। वहां तो कोई अंग्रेजी में जवाब नहीं देता। हां इनफार्मेशन सेंटर जरूर अपवाद थे।





यह है कैनकुन। दक्षिणपूर्व मैक्सिको का एक खूबसूरत बीच। इसे अमेरिका का गोवा भी कहा जाता है। मेरे पीछे कैरेबियन सागर है। बेहद साफ और चमकदार। 2010 में मैं यहां गया था। दुनिया में जितनी भी सुंदर जगहें देखी हैं, उनमें से एक है कैनकुन। यहां के एयरपोर्ट से शहर के बीच के तीस किलोमीटर की हरियाली अद्भुत है। स्थानीय भाषा में कैनकुन का मतलब नेस्ट ऑफ स्नैक्स होता है। सांप तो नहीं दिखे पर कई विचित्र किस्म के जीव मैने यहां देखे। इनमें विशालकाय छिपकलियां भी शामिल हैं। 1974 के बीच यह जगह एक बड़े टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर डेवलप हुई। भारतीयों के लिए दूरी जरूर ज्यादा है। यहां से अमेरिका और फिर न्यूयार्क से चार घंटे की फ्लाइट

यह कैरेबियन सागर है। मुझे तैरना नहीं आता पर मौसम बढ़िया था और पानी इतना साफ कि खुद रोक नहीं सका। थोड़ी हिम़्मत की और उतर गया पानी में। मेरे साथी सिद्दार्थ पाण्डेय ने वादा किया था कि अगर मैं डूबा तो वो बचा लेंगे। खैर यह नौबत नहीं आई क्योंकि उस दिन समुद्र में हाईटाइड या ज्वार नहीं था और मैं बहुत ज्यादा आगे भी नहीं बढ़ा। कैरेबियन सागर के आसपास ही वेस्टइंडीज के टापू वाले देश हैं। हमेशा अफसोस रहेगा कि काफी पास होने के बावजूद मै वहां नहीं जा पाया। हमारे देश के हजारों गिरमिटिया मजदूर तीन चार पीढ़ी पहले वहां जाकर बसे थे और अब वहीं के होकर रह गए हैं-

यह हैं दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में एक माया संस्कृति के कुछ अवशेष। इस जगह का नाम चेचेनइत्जा है। मैक्सिको के दक्षिणपूर्वी हिस्से के युक्तान प्रांत में कैनकुन से करीब दो सौ किलोमीटर दूर। दुनिया भर के लाखों पर्यटक हर साल यहां आते हैं। मेरे पीछे एक पिरामिड है जो माया वास्तुशास्त्र और उनकी ज्योतिषीय जानकारियों का अद्भुत नमूना है। हॉलिवडु से लेकर बॉलिवुड तक कबीलों, खजानों और तंत्र मंत्र पर जितनी फिल्में बनती हैं उनमें से ज्यादातर के पीछे माया सभ्यता की परम्पराओं का जिक्र होता है। अफ्रीका और भारतीय कबीलों की कई संस्कृतियों और माया सभ्यता के बीच काफी समानताएं भी दिखती हैं। मसलन यहां के लोग भी शेर और हाथी को पूजते थे जिस तरह हमारे यहां मां दुर्गा की सवारी और गणेश जी मानते हैं। ढेरों अन्धविश्वासों के साथ साथ इस सभ्यता में काफी कुछ वैज्ञानिक भी था। खासतौर से वास्तुशास्त्र। इन पिरामिडों की छाया से अलग अलग मौसम में अलग अलग आकृतियां बनती हैं। हमने खुद शाम के एक वक्त एक पिरामिड की छाया से मुंह खोले सांप की आकृति बनते देखी। यह माया सभ्यता के लोगों की अद्भुत निर्माण शैली का प्रतीक है-


टॉरटिया यानी मैक्सिकन रोटी। आमतौर पर मैक्सिकन जायके एशियन खासतौर भारतीय स्वाद के थोड़ा करीब हैं। यहां यूरोप की तरह ठंडा और बेस्वाद खाना नहीं है। टमाटर, लाल मिर्च और दूसरे तीखे मसालों से यहां की डिशेज का स्वाद काफी कुछ अपना सा लगता है। टॉरटिया का इस्तेमाल बिलकुल अपनी चपाती की तरह होती है। चाहें सब्जियां आदि भरकर टेको बना लो या फिर अलग अलग तरह के रोल बनाकर कोई अन्य डिश। रोटी मक्का के आटे की बनती है। वैसे काफी जगहों पर गेहूं के आटे का भी इस्तेमाल होता है। होटल व रेस्टोरेंट्स में टॉरटिया पारम्परिक तौर तवे पर बेल और सेंक कर बनती है पर यहां ऐसी मशीनें भी हैं जिनसे एक घंटे साठ हजार रोटियां तक बन जाती हैं। मैक्सिकन जायकों में मीट व सीफूड की बहुतायत है। वैसे मेरी अपनी पसंद तो टेको और सीफूड था। यहां इटैलियन और चाइनीज़ फूड भी आसानी से मिल जाता है। एक दो इंडियन रेस्टोरेंट भी हैं-

कैनकुन में मुख्य शहर से बाहर डाउन टाउन जाते ही आपको इस तरह आर्मी की गाड़ियां नजर आएंगी। इन पर मशीनगनों के साथ खड़े सैनिक अनायास भय का अहसास कराते हैं। दरअसल मैक्सिकों में पिछले कुछ सालों से ड्रग माफिया वार चल रही है। इसमें पांच हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। यह युद्ध ज्यादातर उन इलाकों में होते हैं जहां देश की सीमाएं हैं। कैनकुन के इलाके में भी करीब एक हजार किलोमीटर लम्बी सीमा है। वैसे अच्छी बात यह है कि कभी इस लड़ाई में टूरिस्टों को कोई नुकसान नहीं हुआ। हम यहां करीब दस दिन तक रहे, कभी भी किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। कैनकुन जाइए और आराम से घूमिए-



यह है मैक्सिकन हैट। मैक्सिको आने वाले ज्यादातर पर्यटक इस हैट को यादगार के तौर पर अपने साथ ले जाना नहीं भूलते। हालांकि मैं भूल गया। इस तरह की हैट ज्यादातर इस देश के कस्बाई इलाकों में लोगों के सिर पर दिखती है। टूरिस्टों में भी यह काफी लोकप्रिय है। वैसे मैक्सिको के अलावा इस तरह की हैट्स स्पेन में भी काफी पसंद की जाती हैं। मैक्सिकन हैट डांस भी काफी मशहूर है। इस डांस में थ्री पीस सूट के साथ ऐसी हैट पहने हुए प्रेमी अपनी प्रेमिका को रिझाने के लिए टैप डांस करता है। अपने स्टैप्स और हावभाव से उसे प्रभावित करना चाहता है। दूसरी तरफ प्रेमिका जो साधारण से कपड़े पहने हुए होती है, वह इस डांस से कतई प्रभावित नहीं होती और उसे इग्नोर करती है। डांस के आखिरी हिस्से में प्रेमी अपनी हैट उतारकर जमीन पर फेंक देता है और कुछ फुर्तीले स्टैप्स दिखाता है। मसलन वह अपनी टांगों को अपने सिर के ऊपर ले जाकर अपनी स्मार्ट्सनेस दिखाता है। इससे खुश होकर उसकी साथी फिर साथ में डांस करने लगती है। बहरहाल ऐसा करने का कोई अवसर मेरे पास नहीं था। इस बारे में मुझे यहां पूछने पर ही पता चला।

 
विदेश से अगर आपको दोस़्तों-रिश्तेदारों के लिए गिफ्ट खरीदने हों और ज्यादा खर्च भी न करना हो तो फ्लीया मार्केट सबसे अच्छा विकल्प होता है। इसकी तुलना अब लखनऊ के लव लेन से कर सकते हैं। फ्लीया मार्केट जैसे बाजार ज्यादातर देशों में होते हैं अलग अलग नामों से। मिसाल के तौर मैं अगर कैनकुन की बात करूं तो यहां काफी अच्छी चीजें मिल रही थीं। पर जब मैं दक्षिण अफ्रीका गया तो वहां डरबन बीच पर लगी दुकानों के सामान न तो ज्यादा अच्छे थे और न ही सस्ते। लिहाजा खरीददारी देखभाल कर ही करनी चाहिए और हां मोलभाव सबसे जरूरी है। कई बार चीजें कई गुना महंगी करके बतायी जाती हैं। मैने कैनकुन की इस बाजार में इतना ज्यादा मोलभाव किया कि दुकान चला रही महिला झल्ला गई। एक स्वेटर मुझे बेचने के बाद उसने मुझसे मेरा नाम पूछा, मैने कहा सुधीर, उसने गुस्से में कहा-नो सुधीर यू आर चीपो फिलिपो, मैं हंसता हुआ चला आया-


 यकीन मानिए, यह मेरे पुराने ई 63 नोकिया मोबाइल से खींचा गया फोटोग्राफ है। सिर्फ दो मेगापिक्सल वाले कैमरे से। कैनकुन के ग्रैंड कैनकुन होटल की खासियत यही है कि यहां के ज्यादातर कमरों से समुद्र में उगते हुए सूरज की खूबसूरती को रोज सुबह निहार सकते हैं। मैने तो पहली ही रात पौने छह बजे का अलार्म लगाया। रात में मेरे रूम पार्टनर सिद्धार्थ और मैने तय किया था कि दोनो लोग देखेंगे पर वह गहरी नींद सो रहा था। मै चुपचाप एक कुर्सी लेकर कमरे के बाहर टैरेस पर आ गया। सूरज अभी निकला नहीं था। कैरेबियन सागर के क्षितिज पर जैसे ही लालिमा गहरी हुई, मैने मोबाइल कैमरा ऑन कर लिया। यकीन मानिए इतना सुंदर नजारा नहीं देखा। धीरे धीरे अंडे की जर्दी जैसा नारंगी सूरज उदय हो गया। सूरज उगने और डूबने के नजारे दुनिया के कई मुल्कों में बेहद खूबसूरत होते हैं। पर पहाड़ों और समुद्र के किनारे इनकी बात ही कुछ और होती है। खासतौर पर फोटोग्राफी करने में-
 मैक्सिको से भारत लौटते वक्त शिकागो होकर आना था हालांकि हमको वहां रुकना नहीं था। अमेरिकन एयरलाइंस में कुछ तकनीकी गड़बड़ी के कारण फ्लाइट लेट हो गई। इस वजह से दिल्ली जाने वाली हमारी फ्लाइट छूट गई। खैर, अमेरिकन एयरलाइंस वालों ने उस रात हमें होटल रेडिसन में ठहराया और कहा-कुछ घंटे शिकागो घूम लीजिए, फिर कल अगली फ्लाइट लीजिएगा। हमारी तो निकल पड़ी, खासतौर मैं क्योंकि मेरे पास एक गरम जैकेट थी और वहां काफी बर्फबारी हो रही थी। तापमान करीब माइनस आठ था। मै होटल पहुंचा और निकल पड़ा घूमने। पास में ही एक मॉल था। वहां जाकर खरीदारी की। फिर बाहर निकलकर बर्फबारी का मजा लिया। हम चार लोग थे। एनडीटीवी के सिद्धार्थ पाण्डेय, टेलीग्राफ के जयंतो और लोकमत के राजू नायक। ठंडे इतनी ज्यादा थी कि सबकी हालत खराब हो गई। उपाय सूझा कि रम पी जाए। कैप्टन मॉर्गन रम ली और शिकागो का मशहूर पिज्जा होटल के कमरे में ही मंगाया गया और फिर शुरू हुआ जश्न। वो रात कभी नहीं भूलती। बेहद ठंडी रात। रात दो बजे तक हम अमेरिका के होटल के उस कमरे में हिऩ्दी गानों पर नाचते रहे। बड़ा सुकून था कि अच्छी खरीदारी हो भी गई। मैने एक कैमरा और जैकेट ली। साथियों ने कई इलेक्ट्रानिक गैजेट्स खरीदे। वहां सस्ते मिल रहे थे। हां एक मलाल जरूर था कि हमारे पास शिकागो में चंद घंटे ही थे, ज़्यादा घूम नहीं सके। यादगार के नाम पर शिकागो के फिफ्थ वल्र्ड बैंक के सामने खिंचवाई गई यह तस्वीर ही है कि हमने कैसे शिकागो का मजा लिया। सच तो यही है कि हम वहां कुछ खास देख नहीं पाए। सिवा ओ हेर एयरपोर्ट, होटल रेडिसन और एक मॉल के- खैर फिर कभी शिकागो भी देखा जाएगा और अमेरिका भी-
 
यह नियाग्रा फॉल। सन 2007, यह पहला मौका था जब मुझे पासपोर्ट बनवाने की जरूरत पड़ी। काइज़र फाउंडेशन यूएस से मुझे एचआईवी एड्स पर रिपोर्ट करने के लिए एक फैलोशिप मिली। इसी दौरान कनाडा के टोरंटों में वल्र्ड एड्स कान्फ्रेंस हुई। मुझे भी इसमें जाने का मौका मिला। जिंदगी के वो पल सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाले थे। मुझे पहली बार दिल्ली में कनाडा एम्बेसी में हुई एक पार्टी में जाने का मौका मिला। इसमें बताया गया कि कनाडा कैसा देश है, वहां की क्या खासियत है। कनूाडा के राजदूत हम लोगों से मिले। अगस्त के महीने में हम टोरंटो पहुंचे। हम कान्फ्रेंस से पांच दिन पहले ही पहुंच गए थे। इस दौरान हैल्थ जर्नलिज्म पर हमारी कुछ वर्कशॉप थीं। इसी दौरान काइज़र फाउंडेशन वाले हमे नियाग्रा फॉल दिखाने ले गए। अमेरिका और कनाडा के बीचोबीच नियाग्रा नदी के यह विशालकाय जलप्रपात सेवन वन्डर्स में गिने जाते रहे हैं। वाकई में यह आश्चर्य ही हैं। अथाह जलराशि इतनी तेजी से नीचे गिरती है कि उससे बादल बन जाते हैं जो मीलों दूर से आसमान में नजर आते हैं। फॉल्स के नीचे जाने के लिए क्रूज टाइप के बड़े बड़े मोटरबोट होते हैं। इनमें जाने से पहले नीली पॉलीथिन का एक रेनकोट पहनना होता है क्योंकि यहां काफी ज्यादा नमी होती है जिसमें लोग भीग जाते हैं। हम बोट से वहां गए और दुनिया की सबसे खूबसूरत मानी जाने वाली इस जगह के यादगार लम्हों को जेहन में समेट लाए। वाकई यह ऐसे पल थे जो कभी नहीं भूले। टोरंटो से नियाग्रा तक के करीब चार घंटे के बस के सफर की बात न की जाए तो यह गलत होगा। सफर बेहद खूबसूरत था। इस दौरान हमने कनाडा के कंट्री साइड को देखा। वाइनरीज देखीं जहां दुनिया की सबसे अच्छी माने जाने वाली वाइन बनती हैं। वाइनरीज़ के मालिक सीधे हैलीकाप्टर से खेतों में उतरते हैं। रास्ते में पड़ने वाले ढाबों में कोई भी तली भुनी चीज नहीं मिली। फल, जूस और ड्राइफूट जैसी चीजें। एकदम अलग और नया अनुभव था देने वाली थी यह यात्रा-
 हर किसी की जिंदगी में ऐसे लोग आते ही हैं जो गहरा असर छोड़ते हैं। मेरे जीवन के कुछ ऐसे लोगों में कल्पना जैन भी हैं। काफी पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में हैल्थ एडिटर रही हैं। फिलहाल हावर्ड यूनीवर्सिटर में फैकेल्टी हैं। मेरी इनसे पहली मुलाकात शायद 2006 के आखिर या 2007 में हुई थी। उस वक्त कल्पना काइज़र फाउंडेशन की इंटरनेशनल फैलो थीं। उन्हीं के जरिए मुझे भी भारत में काम करने के लिए यह फैलोशिप मिली। इस फैलोशिप के दौरान मैने पहली बार हेल्थ जर्नलिज्म की गहराई और गंभीरता को सही अर्थों में समझा। कल्पना जैन पहली ऐसी जर्नलिस्ट हैं जिन्होंने एचआईवी पॉजिटिव लोगों की तकलीफ और उनके प्रति समाज के नजरिए को एक किताब के जरिए लोगों के सामने रखा। उनकी किताब का नाम पॉजिटिव लाइव्स है जिसे पेंग्विन ने छापा। यकीन मानिए कि मुझे पहले रोग, रोगियों औरक सेहत से जुड़े मामलों में संवेदनशीलता न के बराबर थी, कल्पना जैन से मिलने के बाद मैने लोगों के दर्द को समझा। टोरंटों में ऐसी कई वर्कशॉप और सेशन हुए जिसने मुझे जर्नलिज्म के प्रति कहीं ज्यादा मेच्योर किया- खैर यह फोटो उसी दौरान नियाग्रा फॉल्स भ्रमण की है-
 नियाग्रा नदी अमेरिका और कनाडा के बीच का नेचुरल बॉर्डर है। 19वीं शताब्दी में इस नदी पर कोई पुल नहीं था। तब न्यूयार्क की एक कंपनी मेड ऑफ मिस्ट दोनों देशों के लोगों को इधर से उधर लाने ले जाने के लिए मोटरबोट की फेरी चलाती थी। इस मोटरबोट को ही मेड ऑफ मिस्ट कहते हैं। बाद में नदी पर ब्रिज बन गया। इससे बोट वालों की आमदनी एकदम से घट गई। बाद में इसे एक टूरिस्ट बोट में बदल दिया गया। आज हर साल लाखों लोग अमेरिका और कनाडा की साइड से इस विशाल जलप्रपात को देखने आते हैं। यहां आने वाले मिस्ट ऑफ मेड फेरीबोट के जरिए ही इस प्रपात के करीब तक जाना होता है। यह बेहद खूबसूरत नजारा होता है। पानी की फुहारों और सूर्य की रोशनी के परावर्तन से अक्सर अक्सर इंद्रधनुष दिखता है। मै जिस दिन गया, मुझे भी वो नजारा नजर आया। यहां जाने के लिए सभी लोगों को एक रेनकोट दिया जाता है जिस पर मेड ऑफ मिस्ट लिखा होता है। इसे लोग यादगार के तौर पर अपने साथ ले जाते हैं।
 सपनों की तामीर का शहर टोरंटो
मेरे सपनों की तामीर का शहर। भूगोल पढ़ना बहुत अच्छा लगता था बचपन से। कौन सा देश कहां है, महाद्वीप कितने हैं और कौन सा महासागर सबसे गहरा। प्रेयरीज घास के मैदान कहां हैं और आल्पस हिल्स की रेंज किस कांटीनेंट है। यह सारी बातें मुझे बचपन से रटी हुई थीं और आज भी हैं। बड़ी ख्वाहिश थी कि इन सारी जगहों को जिन्हें मैने पढ़कर याद किया है, उन्हें देख के समझूं। मेरी यह ख्वाहिश पूरी हुई और टोरंटो वह पहला शहर था जहां पहली बार विदेश की जमीन पर मैने पांव रखे। एक लम्बी लेमोजि़न सरीखी टैक्सी हमे लेने के लिए एयरपोर्ट पर खड़ी थी। आखिर हम उस वक्त दुनिया के सबसे बड़े रईस बिल गेट्स के फाउंडेशन के मेहमान जो थे। टोरंटो एयरपोर्ट शायद दुनिया का पहला ऐसा एयरपोर्ट है जहां अंग्रेजी और फ्रेंच के साथ साथ गुरुमुखी में भी शहर का नाम लिखा है। भारतीय बड़ी तादाद में यहां रहते हैं। खासतौर पर सिख् और गुजराती सिन्धी। यहां की सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी का नाम खालिस्तान ट्रांसपोर्ट कंपनी है। भारतीय खाने, कपड़े, म्यूजिक और तमाम दूसरी चीजों की यहां बड़ी बाजारें हैं। घूमने लायक काफी जगहें हैं। ओंटेरियो झील के किनारे बसा यह शहर कनाडा के सबसे शहरों में से एक है। मै यहां वल्र्ड एड्स कान्फ्रेंस को कवर करने के सिलसिले में पहुंचा था-

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