बंधे बंधे से रहना ही नियति बन जाती है
वो
मेरा हाथ देखकर एक बात कही थी तुमने। न जाने क्या देख लिया अंगूठे के पोरों
के बीच में। जाने कितनी देर तक बेसाख्ता हंसती रही थीं तुम। सब कुछ भुला
दिया, तुमने नहीं मैंने, सच कुछ भी याद नहीं आता। है न, कभी कभी हम अपने मन
को भी बांध लेते हैं, ऐसी गाठों से जो दोबारा लाख चाहो तो भी नहीं खुल
सकतीं। एक ऐसी जकड़न जो कभी आजाद नहीं होने देती, बंधे बंधे से रहना ही
नियति बन जाती है-
Comments
Post a Comment