...तुमको भी कितने काम हैं

मुड़ के देखता हूँ फलक को दूर तलक.. जाने कितने ही चेहरे नजर आते हैं धुंधले धुंधले से..वो जो चमकते थे कभी बारिश के बाद निकले चाँद से ..कुछ गुनाह मेरी नजरों का कुछ ऐब आ गया है उनमे भी ..चलो फिर आगे कहीं ..हम भी मसरूफ बहुत ..तुमको भी कितने काम हैं

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