हमारे लिए पहले आप

सब कुछ ख्वाब सरीखा। या फिर किसी ऐसे ख्वाब की तामीर जो देखा तो था पर याद नहीं। भावनाओं पर काबू पाना आसान नहीं। फिर एक बार पीछे मुड़कर देखने को जी चाहता है। मां का चेहरा याद आता है, मौत से चंद घंटे पहले का। आखिरी बार उनका कहना-बेटा खूब पढ़ना बड़े इंसान बनना। बात करीब 33 साल पुरानी है पर आज बहुत याद आ रही है। वो सारे स्ट्रगल याद आ रहे हैं जो मैंने बरसों किए, वो सारे अच्छे लोग याद आ रहे हैं जिन्होंने जिंदगी में आगे बढ़ाया, वो सारे अपने जिनकी दुआएं हमेशा साथ रहती हैं। अपने लखनऊ में नवभारत टाइम्स का संपादक बनने में जरूर मेरी मेहनत शामिल है पर आपके प्यार, दुआओं और साथ के आगे मेरे लिए उसका कोई मोल नहीं

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